शायरी:-गुजरे लम्हे लौट नहीं आती
शायरी गुजरे लम्हे लौट नहीं आती आज भी हम तुम्हे उतना ही चाहते है जितना पहले चाहते थे दुःख की बात तो ऐ है सनम अब ओह गुजरे लम्हे लौट नहीं आते है ओह गुजरे लम्हे लौट नहीं आते है यहाँ कोई भी इंसान अपनी जवानी छोड़ बुड़ा होना नहीं चाहते लेकिन यहाँ किसीकी कुच नहीं चलती एकदिन जवानी ढल जाती है ऐ सरीर भी बड़ी अजीब है बचप्पन से बूढ़े होते होते न जाने कितना रंग बदल जाती है न जाने कितना रंग बदल जाती है आज भी हम दोनो खुश है क्योंकि हम्हारा प्यार सच्चा है जवानी ढली तो क्या हुवा ऐ दिल आज भी तुम्हारे लिए बच्चा है ऐ दिल आज भी बच्चा है देखते देखते आज बच्चे भी बड़े होगये सब अपने अलग ही दुनियामे खोगये जीने दो बच्चे को अपनी मर्जीसे हमें किसीसे कुछ नहीं कहना है बचे हुवे कुछ दिन हमें एक दूसरे के साथ हस्ते खेलते रहना है हमें एक दूसरे के साथ हस्ते खेलते रहना है लेखक मंजीत छेत्री तेज़पुर असम