कविता-:में भी कुछ करना चाहती हु


में भी कुछ करना चाहती हु
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सुबह सुबह उठके में झाड़ू
पूछा करती हु
सबको नास्ता खिलाके फिर
में स्कूल जाती हु
स्कूल से आके फिर ट्युशन
पड़ाने जाती  हु
अँधेरा होता है घर लौटते वक्त
डर डर के घर आती हु
हां में रोज रात को बाजार
जाती हु
दुनिया जलती है मुझसे क्योंकी
में खुदकी कमाई खाती हु
में खुदकी कमाई खाती हु
लड़की हुयी तो क्या हुवा
में भी कुछ कर सकती हु
खुद के पैर पर खड़ा होके
में भी आगे बड़ सकती हु
में भी आगे बड़ सकती हु
अपने बतन के खातिर लड़की
सीने पे गोली भी खा सकती है
अगर लड़की का बस चले तो
दुनिया में क्रांति ला सकती है
दुनिया में क्रांति ला सकती है
दुनिया क्यों जलती है मुझसे
में भी कुछ करना चाहती हु
में भी आगे बढ़ना चाहती हु
में भी कुछ करना चाहती हु


लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम







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