कविता:-जुल्म् ना कर नारी पे





कविता जुल्म् ना कर नारी पे
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इसतरह जुल्म न कर किसी नारी पर
तुझे महा पाप होगा
याद रखना ए हैवान तू भी एकदिन
किसी लड़की का बाप होगा
तू भी एकदिन लड़की का बाप होगा
इंसान है ओह नारी
उसको भी दर्द होता है
नारी को मारने वाले मर्द नहीं
नामर्द होता है
नारी को मारने वाले नामर्द होता है
घरका सारा काम अकेले करके
तेरे माँ भाई बहन सबका गाली
चुप चाप सेहती है
अपना दुःख दर्द अपने माँ बाप को भी
नहीं कहती है
तेरा घरका पूरा बोज अपने सरपे लेके
रातको तेरा साथ देती है
इसतरह जुल्म न कर नारी को
ओह भी किसीकी बहन बेटी है
ओह भी किसीकी बेटी है
सुख नहीं दे सकता तो उसको
दुःख भी न दे
झगड़े होते है कभी तो मुस्कुराके
एकबार sorry केहदे
जान भी दे देगी ओह तुझे बास उसको
एकबार प्यार दे दे
उसको प्यार दे दे
तेरा घरका पूरा बोज अपने सरपे लेके
रातको तेरा साथ देती है
इसतरह जुल्म न कर नारी को
ओह भी किसीकी बेटी है
ओह भी किसीकी बेटी है

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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