कविता:-कोसिस करने वालो की हार नहीं होता
कविता
कोसिस करने वालो
की हार नहीं होता
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एक लड़का था ओह कही
खोया खोया रहता था
कोई नहीं होते साथमे अकेला
कुच कुच कहता था
कुच पूछा नहीं मेने भी न जाने
कहा से आता था
मेरा सपना कहते अक्सर में
सुनता था सायद कोई सपना
साथी को चाहता था
में रोज उसको देखने लगा
ओह बोलना छोड़के मेरा सपना
मेरा सपना लेखने लगा
एकदिन ओह वहा से चलने लगा
में भी उसका पीछा करने लगा
ओह धीरे धीरे हिमाल परबत
चड़ने लगा बार बार पैर पिसल के
निचे झरने लगा
उसको देख में डरने लगा
न जाने उसने क्या ठाना था गिरने के
बाद भी हार नहीं माना था
ओह चिप्पक के चटान मे आड़ लिया
मेने बोला मरेगा पागल
ऐ क्या करदिया ऐ क्या करदिया
तभी पीछे से सब चिल्लाने लगे
पागल नहीं देख उसने हिमाल पे
अपना झंडा गाड़ दिया अपना
झंडा गाड़ दिया
तब समज आया मुझे पानी में
उतरे बिना समुन्द्दर पार नहीं होता
कोसिस करने वालो की कभी
हार नहीं होता
कोसिस करने वालो की कभी
हार नहीं होता हार नहीं होता
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
कोसिस करने वालो
की हार नहीं होता
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एक लड़का था ओह कही
खोया खोया रहता था
कोई नहीं होते साथमे अकेला
कुच कुच कहता था
कुच पूछा नहीं मेने भी न जाने
कहा से आता था
मेरा सपना कहते अक्सर में
सुनता था सायद कोई सपना
साथी को चाहता था
में रोज उसको देखने लगा
ओह बोलना छोड़के मेरा सपना
मेरा सपना लेखने लगा
एकदिन ओह वहा से चलने लगा
में भी उसका पीछा करने लगा
ओह धीरे धीरे हिमाल परबत
चड़ने लगा बार बार पैर पिसल के
निचे झरने लगा
उसको देख में डरने लगा
न जाने उसने क्या ठाना था गिरने के
बाद भी हार नहीं माना था
ओह चिप्पक के चटान मे आड़ लिया
मेने बोला मरेगा पागल
ऐ क्या करदिया ऐ क्या करदिया
तभी पीछे से सब चिल्लाने लगे
पागल नहीं देख उसने हिमाल पे
अपना झंडा गाड़ दिया अपना
झंडा गाड़ दिया
तब समज आया मुझे पानी में
उतरे बिना समुन्द्दर पार नहीं होता
कोसिस करने वालो की कभी
हार नहीं होता
कोसिस करने वालो की कभी
हार नहीं होता हार नहीं होता
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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