कविता-मेरा जीबन मेरा अधिका
मेरा जीबन मेरा अधिका
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उप्पर वाले ने मुझे बेटी बनाया
उसमे मेरी क्या गलती है
माँ दुर्गा झाँसी की रानी जैसे बीर
पुत्री भूमि में बेटी से समाज क्यों जलती है
जो बेटी पूरी ज़िन्दगी घर को मंदिर और
परिवार का सेवा को मानती है अपनी
पूजा और भक्ति
फिर भी अपनी पसंद की कपडे हो
या जीबन साथी अपनी इच्छा से क्यों नहीं
चुन सकती क्यों नहीं चुन सकती
ससूराल हो या हम्हारी समाज बेटी को
इतना क्यों सताती है
कितना भी अत्तेचार हो बेटी किसीसे
कुछ नहीं कहती थी चुप चाप सबकुछ
सहती थी
जो बेटी परिवार के लिए अपनी कीमती
ज़िन्दगी लुटा सकती है फिर ये ना भूले समाज
जरुरत पड़ने पर कभी दुर्गा तो कभी
झाँसी की रानी जैसे तलवार भी उठा सकती है
बेटी तलवार भी उठा सकती है
writer
Manjit chetry
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उप्पर वाले ने मुझे बेटी बनाया
उसमे मेरी क्या गलती है
माँ दुर्गा झाँसी की रानी जैसे बीर
पुत्री भूमि में बेटी से समाज क्यों जलती है
जो बेटी पूरी ज़िन्दगी घर को मंदिर और
परिवार का सेवा को मानती है अपनी
पूजा और भक्ति
फिर भी अपनी पसंद की कपडे हो
या जीबन साथी अपनी इच्छा से क्यों नहीं
चुन सकती क्यों नहीं चुन सकती
ससूराल हो या हम्हारी समाज बेटी को
इतना क्यों सताती है
कितना भी अत्तेचार हो बेटी किसीसे
कुछ नहीं कहती थी चुप चाप सबकुछ
सहती थी
जो बेटी परिवार के लिए अपनी कीमती
ज़िन्दगी लुटा सकती है फिर ये ना भूले समाज
जरुरत पड़ने पर कभी दुर्गा तो कभी
झाँसी की रानी जैसे तलवार भी उठा सकती है
बेटी तलवार भी उठा सकती है
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Manjit chetry
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