कविता-पैसा बहुत जरुरी है


लोग भगवान को लाखो रुपया चढ़ावा
चढ़ाते है उनको पैसो का क्या जरुरी है
दान देना ही है तो उन भूके नंगे गरीब को दो
उनको जिने के लिए पैसा बहुत जरुरी है
उनको जिने के लिए पैसा बहुत जरुरी है
मन्दिर मे सोना चांदी चढ़ाने से नहीं
मिलता पुन्य इतना
भूके को खाना और प्यासे को पानी
पिलानेसे मिलता है जितना
मंदिर के अंदर जब लाखो की गिनती
हो रहा होता है मंदिर के बहार बैठा
भिख्याऱी भूके नंगे सोरहा होता है
भूके नंगे सोरहा होता है
उप्पर वाला भी सोचता होगा
इंसान इतना मतलबी क्यों हो रहा है
कोई एस ओ आराम के लिए
लाखो उढ़ा रहा है कोई भूके नंगे सोरहा है
लोग भगवान को लाखो रुपया चढ़ावा
चढ़ाते है उनको पैसो का क्या जरुरी है
दान देना ही है तो उन भूके नंगे
गरीब को दो उनको जिने के लिए
पैसा बहुत जरुरी है उनको पैसा बहुत जरुरी है

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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