कविता :-चलो कुच पेड़ लगाए
कविता
चलो कुच पेड़ लगाए
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
छोड़के भीड़ के रस्ते
में अकेले चल रहा हु
सबका भला हो सके कुछ
एैइसा सोच रहा हु
कुछ रस्ते मिल गए
कुछ रस्ते खोज रहा हु
कुच अनुभब से सिख रहा हु
कुच किताब पड़ रहा हु
सबको ऑक्सीजन मिल पाए
में पौधे लगाने का काम कर रहा हु
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
जितना हो सके युवा को
जगाने का काम कर रहा हु
सबको न सही कुच युवा
को जगा सकते है
ज्यादा न सही हम कुछ तो
पेड़ लगा सकते है
एक एक पेड़ लगाय अगर हम सब
दुनिया मे हरिआली छा जायगी
सच कह रहा हु हस्टपिटल छोड़
ऑक्सीजन घर घर आजाएगी
जब जेहरि हवा के जगह ताज़ा
हवा हर जगह छाएगी
सच कह रहा हु ऑक्सीजन
घर घर आजाएगी
जब जेहरि हवा के जगह ताज़ा
हवा हर जगह छाएगी
सोचो जरा तब हम्हारे ज़िन्द्दगी में
कितनी ख़ुशी आएगी
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
छोड़के भीड़ के रस्ते अकेले में
चल रहा हु अकेले में चल रहा हु
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
चलो कुच पेड़ लगाए
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
छोड़के भीड़ के रस्ते
में अकेले चल रहा हु
सबका भला हो सके कुछ
एैइसा सोच रहा हु
कुछ रस्ते मिल गए
कुछ रस्ते खोज रहा हु
कुच अनुभब से सिख रहा हु
कुच किताब पड़ रहा हु
सबको ऑक्सीजन मिल पाए
में पौधे लगाने का काम कर रहा हु
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
जितना हो सके युवा को
जगाने का काम कर रहा हु
सबको न सही कुच युवा
को जगा सकते है
ज्यादा न सही हम कुछ तो
पेड़ लगा सकते है
एक एक पेड़ लगाय अगर हम सब
दुनिया मे हरिआली छा जायगी
सच कह रहा हु हस्टपिटल छोड़
ऑक्सीजन घर घर आजाएगी
जब जेहरि हवा के जगह ताज़ा
हवा हर जगह छाएगी
सच कह रहा हु ऑक्सीजन
घर घर आजाएगी
जब जेहरि हवा के जगह ताज़ा
हवा हर जगह छाएगी
सोचो जरा तब हम्हारे ज़िन्द्दगी में
कितनी ख़ुशी आएगी
थोड़ी सी हिम्मत है मुजमे
थोड़ा सा डर रहा हु
छोड़के भीड़ के रस्ते अकेले में
चल रहा हु अकेले में चल रहा हु
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
Comments
Post a Comment