कविता:-भारत एक राष्ट्र

भारत एक राष्ट्र

न जाने जाती धर्म के नाम पर क्यों
इंसान इंसान से लड़ रहा है
रोज खबर आती है कही हिन्दू
तो कही मुस्लमान मर रहा है
उप्पर वाले ने इन्सान बनाया हम सबको
फिर हम क्यों नहीं सोचते की ओह
एक इंसान मर रहा है ओह एक इंसान मर रहा है

आज जहा भी देखो बात बात पे
जात पात पे बहस होरहा है
इंसान भूलगया की ओह गान्दी आंबेडकर
पुरुसोत्तम राम का बिचार खो रहा है
उप्पर वाले भी देख इंसान को सोचते होंगे
मैंने तो इंसान बनाया था लेकिन
आज ये क्या होरहा है आज ये क्या होरहा है
कही हिन्दू तो कही मुस्लमान रो रहा है
कही हिन्दू तो कही मुस्लमान रो रहा है
इंसान भूल गया की ओह इंसानियाद खो रहा है
इंसान भूल गया की ओह इंसानियाद खो रहा है

कितना सुन्दर दीखता है जब
अलग अलग जाती के फूल
एक ही फुलबारी में एकसाथ खिलते है
भारत को महाँन राष्ट्र बनाना है
आओ दोस्तों जाती धर्म भेद भाव छोड़के
हम सब एक होके गले मिलेंगे
हम सब एक होके गले मिलेंगे
देखना फिर हर हिंदुस्तानी के मुँह मे
मुस्कान खिलेंगे
हर हिंदुस्तानी के मुँह मे मुस्कान खिलेंगे !

 जय हिन्द  जय  भारत 

मंजीत छेत्री

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