कविता-में एक किसान हु कविता



में एक किसान हु
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धुप हो या हो बरसात में चुप चाप
बकुछ सेहता हु
खुद भूके रहके भी में लोगों का खाली
पेट भरता हु
बड़े बड़े सपने मेरे भी है क्योंकी में भी
एक इंसान हु
अपने सपने के लिए सबको भूका नहीं
रख सकता क्योंकी में एक किसान हु
दिन रात खून पसीना एक करके
किसान फसल बोता है
इतना मेहनत के बाद भी हर साल
फसल बर्बाद होता है
साल भरकी पूरी मेहन्नत जब पल
भरमे खोता है
सच कहता हु सरकार बहुत दुःख होता है
सच कहता हु सरकार बहुत दुःख होता है
दिन भर खेतमे काम करके जब रातको
सोता हु नींद नहीं आती
फिर भी रात बितजाय इसलिए सोता हु 
फिर होता है नया सुबेरा नया उम्मीद के
साथ जगता हु
कलकी पुरानी बाते भूलके फिर नयी
बीज बोने लगता हु
हमें अपने फसल का सही दाम देदो सरकार
में एक किसान हु
बड़े बड़े सपने मेरे भी है क्योंकि में भी
एक इंसान हु में भी एक इंसान हु
भी एक इंसान हु

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर
असम

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