कविता:-कुछ कर जाना है
कविता:-कुछ कर जाना है
ज़िन्द्दगी मे मुस्किलो से डर गए तो
ज़िन्द्दगी भर मुस्किलो से पिटोगे
एकबार सिख लिया मुस्किलो से लड़ना
तो ज़िन्द्दगी में हर खेल जीतोगे
ज़िन्द्दगी में हर खेल जीतोगे
मुस्किलो से जो डरगया
ओह ज़िन्द्दगीमें कूच न कर पाएगा
जो लड़ गया हर मुस्किलोसे
ओह इंसान कूच बड़ा कर जायगा
कूच बड़ा काम कर जायगा
बिना संघर्ष किए यहाँ
किसको जीबन मिला है
क्या कसूर था गुलाब का
जो काँटों के बिच खिला है
गाँधी कलाम हो या स्वामी
विवेकान्दा सबको संघर्ष
के बाद ही कामयाबी मिला है
सबको संघर्ष के बाद कामयाबी मिला है
एक छोटी सी सुई दिन रात
न जाने कितना कपड़ा सिलता है
मुस्किलो से हार न मानने वालो को
एकदिन कामयाबी जरूर मिलती है
एकदिन कामयाबी जरूर मिलती है
हमें मुस्किलो से डरना नहीं
मुस्किलो से लड़जाना है
हम दुनियासे जानेके बाद भी
दुनिया याद करे हमें कुच
ऐसा काम कर जाना है
हमें कुच ऐसा काम कर जाना है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
ज़िन्द्दगी मे मुस्किलो से डर गए तो
ज़िन्द्दगी भर मुस्किलो से पिटोगे
एकबार सिख लिया मुस्किलो से लड़ना
तो ज़िन्द्दगी में हर खेल जीतोगे
ज़िन्द्दगी में हर खेल जीतोगे
मुस्किलो से जो डरगया
ओह ज़िन्द्दगीमें कूच न कर पाएगा
जो लड़ गया हर मुस्किलोसे
ओह इंसान कूच बड़ा कर जायगा
कूच बड़ा काम कर जायगा
बिना संघर्ष किए यहाँ
किसको जीबन मिला है
क्या कसूर था गुलाब का
जो काँटों के बिच खिला है
गाँधी कलाम हो या स्वामी
विवेकान्दा सबको संघर्ष
के बाद ही कामयाबी मिला है
सबको संघर्ष के बाद कामयाबी मिला है
एक छोटी सी सुई दिन रात
न जाने कितना कपड़ा सिलता है
मुस्किलो से हार न मानने वालो को
एकदिन कामयाबी जरूर मिलती है
एकदिन कामयाबी जरूर मिलती है
हमें मुस्किलो से डरना नहीं
मुस्किलो से लड़जाना है
हम दुनियासे जानेके बाद भी
दुनिया याद करे हमें कुच
ऐसा काम कर जाना है
हमें कुच ऐसा काम कर जाना है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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