कविता- में गरीब ही ठीक हु



में गरीब ही ठीक हु
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बड़ा मोबाइल बड़ा घर गाड़ी ए तो सबका दिल चाहता है
लेकिन जिसने सबकुछ पा लिया ओ कहा खुश रहता है
मुझे भी मालूम है चप्पल से फोटो नहीं खींचा जाता है
लेकिन इससे ख़ुशी मिलती है तो खुश होने में क्या जाता है
गरीब ही ठीक हु में न ऐसी की चिंता न हीटर की
सर्दी गर्मी सब आराम से सेह पाता हु
जरूरते पूरी हो न हो कमसे कम खुश तो रेह पाता हु
गलत सोच है उसकी जो पैसा को ही ख़ुशी कहता है
पैसे तो बहुत लोगो के पास देखता हु पर कहा कोई खुश
रहता है
खुस रहने के लिए पैसा कामना चाइये ऐ बात हर कोई कहते है लेकिन पैसे तो बोहुतो के पास है हर कोई कहा खुस रहते है
गलत है ओह सब लोग जो पैसे कमाके खुश रहने की बात कहता है खुश तो ओह इंसान दिखता है जो दो रोटी खाके झोपड़ियो में रहता है जो झोपड़ियो में रहता है
पैसा ही सबकुछ होता तो पैसे वाले आत्मा ह्त्या नहीं करते
पैसे से ख़ुशी मिलती तो पैसे वाले सब खुश रहते
दुनिया सोचती है की पैसे वालो का ज़िन्दगी में कोई मज़बूरी नहीं होती
सच तो ऐ है यारो खुस रहने के लिए पैसे की कोई जरुरी नहीं होती खुस रहने के लिए पैसे की कोई जरुरी नहीं होती
हमें न कुछ पाने की इच्छा न कुछ खोने की गम
चेहरे पे मुस्कान रहे तो खुदको खुश नशीब मानते है हम
बड़ा मोबाइल बड़ा घर गाड़ी ए तो सबका दिल चाहता है
लेकिन जिसने सबकुछ पा लिया ओ कहा खुश रहता है???

लेखक मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम



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