शायरी प्यार की दो लफ्जे
शायरी प्यार की दो लफ्जे
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पास भी आजा कभी क्यों
रोज दूर से प्यार जताती है
एकदिन तो मेरे बाहों मे सोना
है तुझे फिर क्यों इतना सताती है
जबभी तेरा याद आता है हाथ में
जाम लेके झुमनेका मन करता है
आँखों में सजाके तस्बीर तेरा
होंटो को चुमनेका मन करता है
जबभी आती है पहला मुलाकात
की यादे में यादो में खोजता हु
तुझे याद करते करते पता भी
नहीं लगता में कब सोजाता हु
कितना अच्छा पल था ओह
तेरे घरमे साधी का जसन था
एकसाथ बैठे थे हम और
बरसात का मौसम था
कोई देख रहा सोचके तू बिच बिच में
खिड़की से देखती थी
जबभी तुझे चूमना चाहा
तू हाथो से छेकथी थी
कहना चाहती थी तूभी बहुत कुछ
लेकिन न जाने क्यों चुप रह गयी
चुप चाप बैठे थे हम दोनों लेकिन
तेरी खामोसी बहुत कुछ कह गयी
तेरी खामोसी बहुत कुछ कह गयी
जबभी तेरा याद आता है हाथ में
जाम लेके झुमनेका मन करता है
आँखों में सजाके तस्बीर तेरा
होंटो को चुमनेका मन करता है
लेखक
मंजीत छेत्री
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