कविता:-अन्न दाता है किसान

कविता:-अन्न दाता है किसान

बरसात में ओह दिन भर भीगता है
कड़ी धुप में ओह दिन भर जलता है
कोई इंसान रातको भूका ना सोये
ऐ सोचके किसान खेती करता है
ऐ सोचके किसान खेती करता है

इतना आसान नहीं किसान होना
हर कोई कहा किसान बन पाते है
बहुत दुःख होता है सरकार जब
किसान आत्मा ह्त्या कर मर जाते है
बहुत दुःख होता है जब किसान
आत्मा ह्त्या कर मर जाते है

इतना आसान नहीं किसान होना
हर कोई कहा किसान बन पाते है
बहुत बड़ा दिल होता है किसानका
हमें खाना खिलाके खुद भूका सो जाता है
गलत बात है सरकार इतना खून पसीना बहाके
उगाय फसल उनको सही दाम नहीं मिल पाता है
उनको सही दाम नहीं मिल पाता है

इतना बड़ा बजड बनाती है किसान का
सरकार ना जाने ओह बजड कहा जाता है
किसान बिचारे को कुच नहीं मिल पाता है
पेपर में ही योजना बनती है या फिर कोई
पूरा बजड ही खा जाते है
इतना खून पसीना बहाके भी किसान को
सरकार सही दाम क्यों नहीं मिल पाता है
किसान को सही दाम क्यों नहीं मिल पाता है

कीचड़ गोबर में किसान को देख लोग आंख
नाक बंद करके उसके पास से गुजर जाते है
उनको जारा सोचना चाइये ओह लोग रातको
डाइनिंग में बैठ के ओहि कीचड़ से उगा हुवा
रोटी खाते है ओहि रोटी खाते है

किसान को अपना हक़ मिले हम सबको
उसके लिये लड़ना चाइये
अन्न दाता है किसान हम सबके हमें
किसान को सलाम करना चाइये
उन्हें प्रणाम करना चाइये
उन्हें सलाम करना चाइये

जय जवान जय किसान

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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