कविता:- हर किसीकी इज्जत होता है
कविता:-
हर किसीकी इज्जत होता है
घर है मेरा हम घरमे बैठके बात
कर सकते है
रस्ते में इसतरह किसी से कभी न लड़ना
किसीको इज्जत नहीं कर सकते तो
किसीका बिज्जति भी मत करना
किसीका बिज्जति मत करना
घरकी बाते घरमे कर लेना
तुम इसतरह रस्ते में न लड़ो
मुझसे ना सही तुम
उस खुदा से तो जरा डरो
घरमे मुझे दो थप्पड़
मारलेना पर इसतरह रस्ते में
कभी बंदामि ना करो
रस्ते में कभी बंदामि ना करो
बहुत दुःख होता है हर किसीको
जब ओह रस्ते में बिज्जत होता है
ज़िन्दगी भर की कमाई जब
पल भरमे कोई खोता है
तुम्हारे नज़र में गिरा हुवा ही क्यों ना हो
पर हर किसीकी अपनी इज्जत होता है
हर किसीकी अपनी जगह इज्जत होता है
इंसान से ना सही तुम
उस खुदा से तो जारा डरो
किसीको इज्जत नहीं कर सकते
तो किसीका बिज्जत भी ना करो
किसीका बिज्जाति ना करो
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
हर किसीकी इज्जत होता है
घर है मेरा हम घरमे बैठके बात
कर सकते है
रस्ते में इसतरह किसी से कभी न लड़ना
किसीको इज्जत नहीं कर सकते तो
किसीका बिज्जति भी मत करना
किसीका बिज्जति मत करना
घरकी बाते घरमे कर लेना
तुम इसतरह रस्ते में न लड़ो
मुझसे ना सही तुम
उस खुदा से तो जरा डरो
घरमे मुझे दो थप्पड़
मारलेना पर इसतरह रस्ते में
कभी बंदामि ना करो
रस्ते में कभी बंदामि ना करो
बहुत दुःख होता है हर किसीको
जब ओह रस्ते में बिज्जत होता है
ज़िन्दगी भर की कमाई जब
पल भरमे कोई खोता है
तुम्हारे नज़र में गिरा हुवा ही क्यों ना हो
पर हर किसीकी अपनी इज्जत होता है
हर किसीकी अपनी जगह इज्जत होता है
इंसान से ना सही तुम
उस खुदा से तो जारा डरो
किसीको इज्जत नहीं कर सकते
तो किसीका बिज्जत भी ना करो
किसीका बिज्जाति ना करो
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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