कविता:- मुस्किलो से लड़ना सीखो
कविता:-
मुस्किलो से लड़ना सीखो
ऐ दुनिया अंजानी नहीं
हम सबके जानि पहचानी है
यहाँ जो भी हो रहा है
सब खुदा की मन मानि है
आपको ओहि मिलेगा जो
आप चाहोगे कुछ नहीं चाहोगे तो
रस्ते भटक जाओगे
ज़िन्दगी मिली है ज़िन्दगी को
पढ़ना सीखो मुस्किले तो
खुदा को भी आयी है
तुम मुस्किलो से लड़ना सीखो
दुसरो पे बहाना न बनाओ
खुद कुछ करना सीखो
कामयाबी चाइये तो
मुस्किलो से लड़ना सीखो
भीड़मे नहीं अकेले चलना सीखो
हर जगह हर कोई तुम्हे पड़े
ज़िन्दगी में कुछ ऐसी बात लिखो
अकेले चल अपने रस्ते वहा कोई
खींच तान नहीं
अकेले चलना थोड़ा मुश्किल है
मुस्किलो से डर जाये कोई
तो ओह इंसान नहीं
बिना संघर्ष किये कामयाबी
किसको मिलती है
क्या कसूर था उस गुलाब का
जो काँटों के बिच खिलता है
संघर्ष करने वालेको एकदिन
कामयाबी जरूर मिलता है
संघर्ष करने वाले को कामयाबी
जरूर मिलता है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
मुस्किलो से लड़ना सीखो
ऐ दुनिया अंजानी नहीं
हम सबके जानि पहचानी है
यहाँ जो भी हो रहा है
सब खुदा की मन मानि है
आपको ओहि मिलेगा जो
आप चाहोगे कुछ नहीं चाहोगे तो
रस्ते भटक जाओगे
ज़िन्दगी मिली है ज़िन्दगी को
पढ़ना सीखो मुस्किले तो
खुदा को भी आयी है
तुम मुस्किलो से लड़ना सीखो
दुसरो पे बहाना न बनाओ
खुद कुछ करना सीखो
कामयाबी चाइये तो
मुस्किलो से लड़ना सीखो
भीड़मे नहीं अकेले चलना सीखो
हर जगह हर कोई तुम्हे पड़े
ज़िन्दगी में कुछ ऐसी बात लिखो
अकेले चल अपने रस्ते वहा कोई
खींच तान नहीं
अकेले चलना थोड़ा मुश्किल है
मुस्किलो से डर जाये कोई
तो ओह इंसान नहीं
बिना संघर्ष किये कामयाबी
किसको मिलती है
क्या कसूर था उस गुलाब का
जो काँटों के बिच खिलता है
संघर्ष करने वालेको एकदिन
कामयाबी जरूर मिलता है
संघर्ष करने वाले को कामयाबी
जरूर मिलता है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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