कविता:-चलो हम सब मिलके होली खेलते है
कविता:-चलो हम सब मिलके होली खेलते है
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ब्लैक एंड वाइट होगयी ज़िन्द्दगी
हर तरफ शोर शारावा और दंगोसे
चलो यारो सब मिलके रंगीन बनाते हे
ज़िन्दगी होली के रंगोंसे
यारो होली के रंगोंसे
हम सबका खून हिन्दुस्तानी है
फिर क्यों हम वापस में लड़ते है
हम वापस में लड़ते है
तभी तो राज नेता धर्म पर
राजनीती करते है
धर्म पर राजनीती करते है
क्या हिन्दू क्या मुस्लिम चलो यारो
हम सब रंग जाते है होली के रंगसे
जिंददगी जीना है हम सबको
हिन्दुस्तानी ढंगसे यारो हिन्दुस्तानी ढंगसे
हम सब हिन्दुस्तानी है फिर क्यों कोई
हिन्दू कोई मुस्लिम सोचते है
बहुत हुवा जात पात की बाते
अब चलो कुच बतन के लिए सोचते है
चलो कुच बतन के लिए सोचते है
हम सब हिन्दुस्तानी है फिर क्यों
कोई हिन्दू कोई मुस्लिम सोचते है
आयी है होली की तिवार तो
चलो यारो कुच अलग खोजते है
हिन्दू मुस्लिम छोड़के अब
बतन के बारे में सोचते है
अब बतन के बारे में सोचते है
मिलके खेलेंगे हम सब होली ऐ दुसमन
तू भी एकबार हिन्दुस्तानी का प्यार देखले
जात पात की राजनीति छोड़ो
हम सब हिन्दुस्तानी एक है
हम सब हिन्दुस्तानी एक है
कुच बाते कहना है हमें कुच बाते सहना है
क्यों लड़े मरे हम वापस में
हम सबको तो हिन्दुस्तान में रहना है
हम सबको हिन्दुस्तान में रहना है
ब्लैक एंड वाइट होगयी ज़िन्द्दगी
हर तरफ शोर शारावा और दंगोसे
चलो यारो सब मिलके रंगीन बनाते हे
ज़िन्दगी होली के रंगोंसे
यारो होली के रंगोंसे
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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