कविता:- जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
कविता:-
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
बोलना ही काफी नहीं
हमें सुन्ना भी चाइये
ज़िन्द्दगी दी है खुदाने तो
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
ज़िन्द्दगी में हमें बोल से ज्यादा
सुन्ना चाइये हमें सुन्ना चाइये
मिल जाते है ढूंडने से खुदा तो
हमें भी कुछ ढूंडना पडेगा
सफलता के लिए आशान नेही
मुश्किल राह चुनना चाइये
इतिहास गवा है आज भी
मुस्किलो से लड़ने वाले
हर किसीने कामयाबी पाई है
मिल जाते ढूंढने से खुदा
हमें तो खुदकी ताकत ढूंढना है
दुनिया में आके कुछ कर पाय
ऐसे रस्ते ढूंढना है
जब सपना चुनना ही है तो
कुछ बड़ा चुनना है
हमें कम बोलके ज्यादा सुन्ना है
मिल जाय कामयाबी एकदिन
हमें कुछ ऐसे रस्ते चुनना है
लोग खुदा भी ढूंढ निकालते है
हमें तो अंदर खुदको ढूंढ़ना है
बोलना ही काफी नहीं हमें
सुन्ना भी चाइये ज़िन्द्दगी दी है खुदाने
तो हमें जीने की वजह ढूंडा चाइये
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
बोलना ही काफी नहीं
हमें सुन्ना भी चाइये
ज़िन्द्दगी दी है खुदाने तो
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
ज़िन्द्दगी में हमें बोल से ज्यादा
सुन्ना चाइये हमें सुन्ना चाइये
मिल जाते है ढूंडने से खुदा तो
हमें भी कुछ ढूंडना पडेगा
सफलता के लिए आशान नेही
मुश्किल राह चुनना चाइये
इतिहास गवा है आज भी
मुस्किलो से लड़ने वाले
हर किसीने कामयाबी पाई है
मिल जाते ढूंढने से खुदा
हमें तो खुदकी ताकत ढूंढना है
दुनिया में आके कुछ कर पाय
ऐसे रस्ते ढूंढना है
जब सपना चुनना ही है तो
कुछ बड़ा चुनना है
हमें कम बोलके ज्यादा सुन्ना है
मिल जाय कामयाबी एकदिन
हमें कुछ ऐसे रस्ते चुनना है
लोग खुदा भी ढूंढ निकालते है
हमें तो अंदर खुदको ढूंढ़ना है
बोलना ही काफी नहीं हमें
सुन्ना भी चाइये ज़िन्द्दगी दी है खुदाने
तो हमें जीने की वजह ढूंडा चाइये
जीने की वजह ढूंढ़ना चाइये
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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