कविता-मोहब्बत बतन से

मोहब्बत बतन से
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बतन से वो मोहब्बत कुछ
इसकदर कर जाते है
बतन रोसन रहे इसलिए
खुद जल जाते है खुद जल जाते है
जैसे घरको रोसन रखने के लिए
मोमबत्ती खुद जल जाता है
फौजी भी बतन के खातिर
खुदको कुर्बान करजाता है
खुदको कुर्बान करजाता है
बतन के लिए जीना मरना है
ऐ बात दिलो दिमाग से ठान लेता है
क्योंकी ओह अपना बतन को ही
अपना जान मान लेता है
अपना जान मान लेता है
पहले बतन फिर अपना घर ऐ
बात हर फौजी कहता है
सायद इसलिए घर परिवार छोड़ के
फौजी दूर जंगल में रहता है
बतन से वो मोहब्बत कुछ इसकदर
कर जाते है
बतन रोसन रहे इसलिए खुद
जल जाते है बतन बचा जाते है
बतन बचा जाते है

जय हिन्द जय भारत
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम


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