कविता- पड़ते चल आगे बड़ते चल


पड़ते चल आगे बड़ते चल
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ज़िन्दगी एक किताब है इसे जितना पलटोगे उतना ही
सीख पाओगे पड़ना थोड़ा मुस्कील है
अगर पड़ पाओगे तो बहुत आगे बड़ पाओगे
ज़िन्दगी में बहुत कुछ कर जाओगे तागत से नहीं बुध्दि से हर गेम जित पाओगे हर गेम जित जाओगे
सारा काम छोड़ तू इसको पहले पड़ दुनिया को सोने दे तू उठ और चल
चल आगे बड़के दिखादे दुनिया को तू कुच करके दिखा दे
मुस्किले बहुत आएगी तू डरना नहीं आगे बड़ते जा
मुस्किलो से लड़ते चल दुनिया याद रखे तुजे ऐसा कुछ करते
चल
ज़िन्द्दगी एक किताब है इस किताब को पड़के जा
दुनिया तेरा बायो ग्राफी पड़ने को तरस जाय ऐसा कुछ
करके जा ऐसा कुछ करके जा ऐसा कुछ करके जा

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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