कविता-कहा गया बचप्पन हम्हरा


कहा गया बचप्पन हम्हरा
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न जाने हस्ता खेलता बचप्पन
आज कहा खो गया
पैसे से टिकी है सबके सांसे
दुनिया क्या से क्या होगया
माँ जब बाजार जाती थी
सबके लिए मिठाई ले आती थी
छोटी सी चॉकलेट भी हमें
कितना ख़ुशी दे जाती थी
बिछड़ गए आज हम सब साथी
देस बिदेस में छा गए
पैसे कमाते कमाते न जाने हम
कहा से कहा आगऐ
बड़े हो गए आज हम सब बड़े
बड़े घर गाड़ी सबने किनलिया
पैसे तो बहुत दिया जवानी ने
पर चेहरे से ख़ुशी छीनलिया
चेहरे से ख़ुशी छीनलिया
भाईको किसीने कुछ कहा तो
हम उसको पिट देते थे
देखते देखते ऐ क्या होगया
आज भाई भाई का आंगन
से सीमाना खींच लेते है
देखते देखते दुनिया क्या से क्या हो
गया है इंसान तो ओह ही है
लेकिन इंसानियाद खो गया है
बिछड़ गए आज हम सब साथी
देस बिदेस में छा गए
पैसे कमाते कमाते न जाने हम
कहा से कहा आगऐ

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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