कविता-हम्हारी मज़बूरी
हम्हारी मज़बूरी
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सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
पिता कोई नेता नेही बन पाए
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
खाली पेट नींद नहीं आती
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
इतने सारे योजना बनाती है सरकार
गरीब को क्यों कुच नहीं मिल पाता है
सिर्फ पेपर में ही योजना बनता है
या कोई पूरी योजना ही खा जाता है
सरम नहीं आता इन्हे हाथ जोड़के
वोट मांगने आजाते है
जितने के बात हम जैसे बच्चो का
भी हक़ छीनके खा जाते है के
सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
पिता कोई नेता नेही बन पाए
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
पिता कोई नेता नेही बन पाए
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
खाली पेट नींद नहीं आती
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
इतने सारे योजना बनाती है सरकार
गरीब को क्यों कुच नहीं मिल पाता है
सिर्फ पेपर में ही योजना बनता है
या कोई पूरी योजना ही खा जाता है
सरम नहीं आता इन्हे हाथ जोड़के
वोट मांगने आजाते है
जितने के बात हम जैसे बच्चो का
भी हक़ छीनके खा जाते है के
सौक नेही हमें मजदुरी करने की
एतो हम्हारी मज़बूरी है
पिता कोई नेता नेही बन पाए
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
बस यहि हम्हारी कमजोरी है
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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