कविता:-आज फिर बचप्पन याद आया


कविता
आज फिर बचप्पन याद आया
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याद तो रोज करता हु दोस्तों
तुम्हारी याद हर पल आता है
पैसे तो हर कोई कमाता है
पर तुम्हारे जैसे प्यारे दोस्त
कहा किसीका नसीब होता है
याद आती है बचप्पन की तो
ऐ दिल आज भी तुम्हारे यादमे
रोता है
जो ख़ुशी मिलती थी साइकेल की
पुरानी टायर चलाके
ओह ख़ुशी नहीं मिला आज
लाखो की गाड़ी चलाके
शाम को कितना भी लड़े झगड़ा करे
सुबह फिर एक साथ खेलने जाते थे
एक रुपया भी होती अगर किसीके पास
तो सब मिलके खाते थे
कोई मतलब नहीं था हमें हम
सुबह खेलने जाते तो शामको घर आते थे
घरमें दो चार गाली खाते थे
फिर होती सुबह तो एकजुट होजाते थे
आज दोस्त बिछड़ गए पर ओह हसींन यादे
आज भी दिलमे ज़िंदा है
मजबूर हु हालात्तो से क्या करू
आज खेलने की नहीं सबको
खिलाने की चिंता है खिलाने की चिंता है
हम कही कैसे भी रहे तुम सब दोस्तों की
याद मेरे दिलमे आज भी ज़िंदा है
मजबूर हु  हालात्तो से आज पड़ने नहीं
पड़ाने की चिंता है पड़ाने की चिंता है

लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम

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