कविता:-डिग्री नहीं हुनर बोलता है
कविता:-डिग्री नहीं
हुनर बोलता है
तू ऐ नहीं कर सकता
तू ओह नहीं कर सकता
तू जबतक पड़ नहीं सकता
तू कुछ कर नहीं सकता
बचप्पन से सुनते आया ऐ सब बात
सुनके आज भी मेरा खून खोलता है
ऐ डिग्री डिग्री कहने वालो ज़ारा
इतिहास पड़लो समज आएगा तुम्हे
एक सफल योध्य का डिग्री नहीं
उसका हुनर बोलता है
उसका हुनर बोलता है
जितना चादर उतना पॉउ फैलाओ
ऐ बहुत पुरानी बात है
आजके हुनर वाले को सफलता से
रोक के दिखादे ऐ कागज के डिग्री
तेरी कहा इतनी ओकात है
तेरी कहा इतनी ओकात है
सपने देखना ही है तो छोटे क्यों
सपने हमेशा बड़े दिखना चाइये
अरे डिग्री नहीं तो क्या हुवा
डिग्री वाले को पड़ने लाइक कुछ
लिखना चाइये
बहुत बड़े बड़े अनपड़ हुनर वाले दिखेंगे
आपको इतिहास पढ़ना चाइये
अपनी डिग्री पे नहीं अपनी
हुनर पे बिस्वास करना चाइये
अपनी हुनर पे बिस्वास करना चाइये
लेखक
मंजीत छेत्री
तेज़पुर असम
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