कविता:-कुछ कर जाना है

कविता:-कुछ कर जाना है

हर किसीकी दिलकी चाहत होती है
अपना भी कुछ चाहना है
बहुत कुछ खोये ज़िन्द्दगी मे
अब खुदमे क्रांति लाना है
मेरी बात भी सुनले खुदा
बास यही मेरी चाहना है
जाते जाते ज़िन्द्दगी में
इतिहास लिख जाना है
धुप हो या बरसात में
सबकुच झेल जाऊंगा
आग लगी है दिलमे
कुछ कर जाने की अब में
आग से भी खेल जाऊंगा
देखते देखते एकदिन में भी
आम से खाश बन जाऊंगा
बचप्पन से सपना था कुछ करनेका
अब में भी कुछ कर पाऊंगा
हर किसीको रोटी कपड़ा मकान मिले
ऐसा कुछ कर जाना है
बास यही मेरी एक चहाना है
बस यही मेरी चाहना है
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
हम सब मिलके साथ चलेंगे
जन्म मिला भारत माँ के गोदमे
भारत माँ के लिए कुछ कर जाना है
सुनले खुदा मेरी पुकार बास यही
मेरा चाहना है जाते जाते इस दुनियासे
भारत माँ के लिए कुछ कर जाना है
बास यही मेरी चाहना है
बास यही मेरी चाहना है

      लेखक
     मंजीत छेत्री
     तेज़पुर असम

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